राज़ की बात सुनो ज़रा
मेहनत से न मुह फेरो
ज़िन्दगी के सफर में
यह बनेगी शक्ति तुम्हारी |
ताबीज़ ,बबूत आँखों का धोखा
आत्मविश्वास से है छोटा
आत्मविश्वास है जिसके अन्दर
कीमती हीरा है उसके पास।
घड़ी के कांटे भाग रहे है
किसकी प्रतीक्षा में हो तुम
मेहनत की नौका में सवार
पहुँचो सफलता के शिखर पर |
मेहनत को अपनाये जो
वही सिकंदर बने यारो
अपना भाग्य वे खुद लिखे
कदम उनके चूमे मंजिल |
दुर्गम मार्ग पर चलकर ही
चींटी मंजिल को पाती है
सुगम मार्ग पर चलती तो वे
बस रहो में खो जाती ।
इसलिए दोस्तों मेरी मानो
मेहनत से बदलो दुनिया
इस अजूबे से जग में
सफलता बने गुलाम तुम्हारी ।
कलम : श्रुति ई आर