Saturday, March 30, 2013

मूल्यों की हत्या

                                             

मानव से मानवता 
दूर भाग रही है | 
जाने कहा और क्यों 
गुम होती जा रही है | 

ज़िन्दगी की भाग दौड़ में 
अपनी पहचान खो चुके है हम | 
लालच और छल को 
अपना गहना बना चुके है | 

आज रुपए की कीमत 
घटती जा रही है | 
अपने मतलब की पूर्ति के लिए 
अपना इमान बेचते जा रहे है | 
हर इन्सान  आज 
भ्रष्टाचार के रंग में  घुलता  जा रहा  है | 

शिक्षा का मंदिर आज 
 ज्ञान से ज्यादा पैसो की 
भाषा बोलता  है | 
नैतिक मूल्यों  से परे 
किताबो के पन्ने रटाते है | 

कही भी जाये हम 
पाओगे तो बस दौड़ 
पैसो के लिए दौड़ 
जहा अपने नहीं पराये नहीं 
स्वाभिमान नहीं मुल्य नहीं 
टेबल के नीचे से या फिर ऊपर से 
गिरते जा रहे है अपने ही पापो से | 

भारत हमारा देश है। हम सब भारतवासी भाई- बहन है  .......
क्या याद है किसी को यह सब 
क्यों भूल जाते है हम सब | 
जहा भी देखो मार-पीठ 
एक-दूसरे  की हत्या या फिर 
बम विस्फोट और लूट -मार 
अपहरण और क्या कुछ नहीं | 

भाईचारा और प्रेम जाने कहा
और  किस कोने  में 
लुप्त हो चुके है 
आज  इंसान इंसानियत से दूर 
जानवर बनता चला जा रहा है | 

आखिर किसे दोषी करार दे 
इस देश के लोगो को या 
फिर हमारी जड़ो को 
यह सिलसिला आज आसमा 
छू रहा है | 
रोके तो किस किसको हम | 

हल क्या है समाधान क्या है 
कभी सोचा है इस बारे में | 
आज क्यों हमारे मूल्यों की हत्या 
इतनी तेज़ी से बढती जा रही है | 

क्या गाँधी ,नेहरु के 
सपनो का भारत ऐसा था | 
उनकी आज़ादी की लड़ाई 
इन्साफ की जंग 
क्या आज व्यर्थ होती जा रही है | 

जागो दोस्तों  जागो 
ऐसा ज़ुल्म न करो देश पर | 
अंधकार के गहरे कुए में या फिर 
रोशनी की जगमगाती दुनिया में 
किस दिशा में चलानी है देश की नौका 
फैसला तुम्हारा है | 
बस तुम्हारा है |


   कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

Tuesday, March 5, 2013

ज़िन्दगी

                                          

मुश्किलें खोलती है कई राज़
सबक बना देती है सिकंदर
ज़िन्दगी तो जीने का बस दूसरा नाम
दिखा देती है कई अनदेखे  सुराख़
करती है नए रास्तो से परिचय
बना देती है हमको इंसान ।

सूरज की तपती  धूप  ले आता है यह पैगाम
रास्तो में कई काँटों से होगी मुठभेड़
कायरता का रास्ता न अपनाना तुम
क्या हुआ अगर कांटा चुभ  गया तो
तुफानो को पार  करना है अभी बाकी
चांदनी की आड़ में भूल न जाना ऐ इंसान
ज़िन्दगी हमेशा फूलो का गुलदस्ता नहीं ।

डूबते हुए सूरज के साथ
नया सवेरा ज़रूर आता है
उम्मीद के इस चक्रव्यूह में
किनारा कभी तो दिख जाता है
प्यासे को पानी, भूखे को खाने की तलाश में
बस ज़िन्दगी युही गुज़र जाती है
सिकंदर कहलाता है वो जिसने
अमावस में चांदनी है खोजी ।

ज़िन्दगी से खुशियों की गुज़ारिश में
बना लेते है अपने को ही शत्रु
अपने कल की तलाश में
अपने आज से कह देते है अलविदा
ज़िन्दगी बनी उनकी रंगीन जिसने
मुरझाते फूल को हसना है सिखाया ।


दुर्गम राहे डूबा देते है
आसूओ के गहरे सागर में
धूप ,पसीना बना देती है
खून और लहू को भी पानी
लेकिन जिसने विघ्न से खेलना है सीखा
उसने ज़िन्दगी जीना  है सीखा ।

कभी हार तो कभी जीत
कभी सुख तो कभी दुखो की बरखा
कभी बहार तो कभी छाए काले बादल
ज़िन्दगी तो बस है एक रूपए का सिक्का ।

नाविकों की अदा  है निराली
कैसे करते है तुफानो का सामना
ख़ोज लेते है अपनी मंजिल
कुछ सीख इंसान कुछ ले सबक ।

क्या हुआ अगर पसीना तूने है बहाए
रीढ़ की हड्डी तो बनी मज़बूत
इस जिगर के साथ अपने कदम बढ़ा
देख दुनिया फिर करे सलाम तुझे ।
  

  कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

Monday, March 4, 2013

तेरी मेरी दोस्ती

तेरी मेरी दोस्ती है उन
हिमालय पर्वत से भी ऊँची
जहाँ हिम और गगन
हाथ  मिलते है ।

तेरी मेरी दोस्ती है
सागर की गहराई से भी गहरी
जहाँ आज तक कोई
इंसान न पहुँच सका हो |

दोस्ती हमारी है उन
समुद्र  की लहरों की तरह
जो एक दुसरे के सुख-दुःख में
साथ  लहराकर बहा करती है।

तेरी मेरी दोस्ती है उन
सदाबहार वनों की तरह सदा हरित
जो जुदा होकर भी
एक दुसरे के सात होती है |

फिर न जाने कब आये  ये पतझड़
पेड़ो की पत्तो की तरह
कर दिया हमें अलग
डाल  दी दरार हमरी दोस्ती पर |

फिर पता नहीं कहा से आए
ये बिन मौसम की बरसात
वर्षा की बूंदों की तरह
जिसने मिटा दी हमारी सारी  यादे |

लेकिन फिर भी मुझे
आशा की किरण नज़र आई
फिर मैंने महसूस किया
यह सिर्फ वेहम था मेरा |

जिस तरह वर्षा के समय
पीले पल्लव लाते फिर से हरियाली
उसी तरह यह रुकवाते
बनती हमारी दोस्ती को और गहराह
इस तरह हम बंधे है
प्रेम की एक डोर  से |
  
 कलम  : श्रुति ई  आर