Tuesday, March 5, 2013

ज़िन्दगी

                                          

मुश्किलें खोलती है कई राज़
सबक बना देती है सिकंदर
ज़िन्दगी तो जीने का बस दूसरा नाम
दिखा देती है कई अनदेखे  सुराख़
करती है नए रास्तो से परिचय
बना देती है हमको इंसान ।

सूरज की तपती  धूप  ले आता है यह पैगाम
रास्तो में कई काँटों से होगी मुठभेड़
कायरता का रास्ता न अपनाना तुम
क्या हुआ अगर कांटा चुभ  गया तो
तुफानो को पार  करना है अभी बाकी
चांदनी की आड़ में भूल न जाना ऐ इंसान
ज़िन्दगी हमेशा फूलो का गुलदस्ता नहीं ।

डूबते हुए सूरज के साथ
नया सवेरा ज़रूर आता है
उम्मीद के इस चक्रव्यूह में
किनारा कभी तो दिख जाता है
प्यासे को पानी, भूखे को खाने की तलाश में
बस ज़िन्दगी युही गुज़र जाती है
सिकंदर कहलाता है वो जिसने
अमावस में चांदनी है खोजी ।

ज़िन्दगी से खुशियों की गुज़ारिश में
बना लेते है अपने को ही शत्रु
अपने कल की तलाश में
अपने आज से कह देते है अलविदा
ज़िन्दगी बनी उनकी रंगीन जिसने
मुरझाते फूल को हसना है सिखाया ।


दुर्गम राहे डूबा देते है
आसूओ के गहरे सागर में
धूप ,पसीना बना देती है
खून और लहू को भी पानी
लेकिन जिसने विघ्न से खेलना है सीखा
उसने ज़िन्दगी जीना  है सीखा ।

कभी हार तो कभी जीत
कभी सुख तो कभी दुखो की बरखा
कभी बहार तो कभी छाए काले बादल
ज़िन्दगी तो बस है एक रूपए का सिक्का ।

नाविकों की अदा  है निराली
कैसे करते है तुफानो का सामना
ख़ोज लेते है अपनी मंजिल
कुछ सीख इंसान कुछ ले सबक ।

क्या हुआ अगर पसीना तूने है बहाए
रीढ़ की हड्डी तो बनी मज़बूत
इस जिगर के साथ अपने कदम बढ़ा
देख दुनिया फिर करे सलाम तुझे ।
  

  कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

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