Monday, April 22, 2013

मै किसी का खिलौना नहीं



हाँ में एक औरत हूँ
किसी की बेहन ,
किसी की माँ ,
किसी की पत्नी
और न जाने कितने रिश्ते
निभाती हूँ ईमानदारी से |

हाँ में एक औरत हूँ
अपना घर -परिवार संभालती हूँ ,
संतान को जन्म देती हूँ,
देश क डोर संभालती हूँ ,
कभी डॉक्टर तो कभी इंजिनियर ,
कभी लेखिका तो कभी शिक्षक ,
कभी पुलिस तो कभी फ़ौजी ,
कभी वैज्ञानिक तो कभी गायिका ,
न जाने कहाँ -कहाँ
देती हूँ अपनी भगीदारी
देश को सीने से लगाकर
देती हूँ विकास में योगदान ।

क्या हुआ अगर में औरत हूँ
क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है ?
क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है ?
क्या समानता ,स्वतंत्रता
मेरे लिया लागू  नहीं है ?
क्या मुझे कोई भी हक़ नहीं है ?

क्या हो गया है इस देश को
जहाँ देश को भारत माता कहते है ,
धरती को धरती देवी कहते है,
माता की पूजा और वंदना करते है ,
उसी देश में औरत की निंदा भी करते है ।

औरत पर अत्याचारों की वृष्टि होती है
भ्रूण -हत्या और बलात्कार का शिकार होती है
औरत आज मर्दो के हाथ का खिलौना बन चुकी है |

आज बलात्कार की संख्या
आसमान छू रही है
हवस के भूखे भेड़ियों का
शिकार बनती जा रही है
वह औरत को चीरता -दबोचता है
लेकिन कोई उस पर ऊँगली नहीं उठाता ।

देश के हर शहर -कस्बे में
यह वारदात आम हो चुकी है
औरत आवाज़ उठाती है
लेकिन आवाज़ किसी कोने में दब जाती है
नारेबाजी होती है पर कोई कानून नहीं बनता
पढ़े -लिखे गवारो की दुनिया में
औरत मात्र खिलौना बन चुकी  है ।

माँ नहीं, बेहन नहीं 
बच्ची नहीं ,औरत नहीं
जहाँ स्र्त्रीजात को देकते है
अपने दरिन्देपन पर उतर आते है ।

आखिर क्या गलती है हमारी ?
औरत होना क्या पाप है ?
कब आयेगा नया सवेरा
हमारे जीवन में
जब हमारा हक हमें मिलेगा
पहचान और इज्ज़त मिलेगी
हमे  कुचला नहीं जायेगा ।

समय आ गया है बदलाव का
नया कानून बनाने का
दरिंदो को हत्काडिया पहनाने का
औरत की रक्षा -सुरक्षा करने का
उन्हें उनका हक़ लौटने का । 


कलम :श्रुति ई आर 

Sunday, April 21, 2013

जी ले ज़रा

        

मौसम का पैगाम है
मुस्कादो  ज़रा दिल से
खुशिया दस्तक देगी
कुछ ही  पल भर में |

छोड़ो  सब काम -काज़  को
महसूस करो इन हवाओ को
जीलो ज़रा इन लम्हो को
दर्द -परेशानी से दूर
शांति भरे वातावरण में।

क्यों तुम इस भाग दौड़ में
खो रहे हो अपने आपको ,
अपने प्यारी ज़िन्दगी को
ज़रा ठहरो और देखो ज़रा
दुनिया कितनी रंगीन है ।

मदहोशी से बहती नदी को देखो,
झरनों से बहती लहरों को देखो ,
झूमती कलियों को तो  देखो,
भवरो के गूँज को तो  सुनो,
तितली के रंगों  को तो देखो |

बरसात के बोंदो को महसूस करो ,
मिट्टी सुगंध को पहचनो ,
हर मौसम के रंग को देखो ,
हर छोटे-बड़े लम्हों को जियो
कोयल का गीत सुनो  ,
प्रकृति के साथ जी कर तो देखो ।


कलम :श्रुति ई आर


 
 

Friday, April 19, 2013

तबाही का जशन

                              
आज शहर  में बड़ी चहल -पहल  है
लोग अपने कम-काज़ में
बड़े व्यस्त नज़र आ रहे है
तेज़ रफ्तार में चलती गाड़ी की तरह
ज़ोरो -शॊरो में भाग रहा है  शहर  |

बच्चे खुशी -खुशी
पाठशाला जा रहे है
माँ चहरे पर मुस्कान लिए
कर  रही है विदा ।

कोई दफ्तर जा रहा है तो
कोई घर के काम में व्यस्त
कोई पढ़ने जा रहा है तो
कोई पढ़ाने  जा रहा है ।

अरे अचानक से यह क्या हुआ
यह बड़ा धमाका कहा हुआ
चारो ओर चीखो की आवाज़
आँखों से आँसू और बदन से खून
लोग दर्द से रो रहे है
चारो और अंधकार छा  गया है 
शहर में हंगामा मच गया है ।

खून से लतपत हुई  धरती
दयनीय अवस्था में
लोग चीख रहे है
कोई अपना हाथ खो चुका है तो
कोई अपने दोनो पैर
तो कोई ज़िन्दगी और मौत के बीच
कई तो ईश्वर को प्यारे  हो गए  है  ।

अम्बुलेंज़ तेज़ी से जा रही है
सहायता का हाथ बड़ा रही है
 अस्पताल और डाक्टरों  से ज़्यादा
अस्पताल में पीड़ित की संख्या।

पुलिस और पत्रकारो ने
पूरे शहर को घेर लिया
आकाशवाणी और दूरदर्शन में
तबाही की खबरे
देश की जनता,
पूरा शासन परेशान
और आँखों  में सबके  नमी  ।


आज मनुष्य ,मनुष्य की जान लेता है
कस्बा ,शहर और देश तबाह करता है
रोशनी के मार्ग से कोसो परे
अंधकार का मार्ग अपनाता है
अपने ही भाई -बहनो से जीने का हक छिनता है ।

आखिर क्यों हो रहा है यह सब ?
क्यों लोग तबाही का जशन मानाते  है ?
दूसरो के आँसू का  जाम क्यों पीते  है ?
क्या इन्सनियात इसी को कहते है ??


कलम :श्रुति ई आर
 

Thursday, April 18, 2013

मुझे भी जीने का हक है




छोटी सी गुड़िया बन
मै  आऊँगी इस दुनिया में
किलकारियो से घर -आँगन
गूँज उठेगा |

सीने से अपने लगाना
मेरी प्यारी माँ
प्यारी-प्यारी लोरी
मुझे सुनना तुम ।

आपका हाथ पकड़कर
चलना सीखूँगी मै
आपके साथ मस्ती
करुँगी मै ।

पढ़ -लिखकर  ऊँचाई छू  लूँगी  मै
आपका सपना पूरा करुँगी मै 
और घर-परिवार में लाऊँगी रोनक मै ।

नहीं ! यह मुझे
क्या हो रहा है
मेरी साँस क्यों
थम रही है ।

क्या थी मेरी गलती ?
क्यों किया ऐसा मेरे साथ ?
मुझे इस दुनिया में आने तो देते
इस सुन्दर दुनिया का दीदर
करने तो देते ।

किस बात का था डर आपको
दहेज  का या फिर किसी और बात का
माँ मै  कोई बिकाऊ वस्तु नहीं
जीने का हक़ है मुझे भी ।

क्या गलत है
अगर मै कन्या हूँ
देवी माँ को तो
पूजते हो तुम
जब उनकी करते हो इज्ज़त  तो
मेरी निंदा क्यों करते हो ??


कलम : श्रुति  ई  आर


Wednesday, April 17, 2013

DEDICATED 2 MQB..THE MOST FAMOUS GANG OF STCET..
दास्तान है ये
मछरो के फ़ौज की
आवारा ,निकम्मे
यारो के यारी की |

दोस्ती थी इनमें
बड़ी गहरी
मरते -जीते थे
एक दूजे के लिए ।

अपनी मर्ज़ी के मालिक
जीते है अपनी ज़िन्दगी
ऐशो ,आराम और खुशी से
करते है आवारागर्दी ।

कक्षा में हमेशा पीछे बैठते
गप -शप ,गप -शप  करते रहते
एक दिन नाराज़ हुए
डाल दिया नाम इनका


नाम का जादू ऐसा चला
दोस्ती का रंग गहरा हुआ
अब उठना -बैठना साथ में
हँसना -रोना साथ में ।

घूमने गए छुट्टीयो में
और पास आये एक दुसरे के
जब जेब होने लगा खाली
एक ही थाली में खाने लगे
बड़ा पेट ,छोटा बर्तन
दिल था खुश और पेट था भरा ।

छुट्टीयो  के बाद यादो को सजोये रखा
तस्वीर को दिल से लगा कर रखा
बाते -करते ,हँसते -गाते
खुशी से अपना दिन बिताते ।

एक था उसमे सबसे निराला
नन्हा -मुन्ना मजनू  आवारा
कई कन्याओ के दिल में दस्तक दी
पर हाथ न आई एक भी छोरी ।

एक था सबसे मोटू उसमे
सबसे प्यारा ,सबसे नटखट
वज़न घटाने के बारे में
सोचता हर दिन पर करता नहीं ।

एक सवेरा ऐसा आया
मिला इनको एक प्यारा तोफा 
शिक्षक के रूप में इन्हे मिला
एक बड़ा भाई और सच्चा दोस्त
साथ दिया उन्होंने हमेशा
दिखाया मार्ग सदा रौशनी का । 


Thursday, April 11, 2013

मेरी माँ


ममता का सागर
दया की धारा
प्रेम की मूरत
ऐसी है मेरी माँ |

कभी सूरज की किरणो की भांति
कभी चंदा की चाँदनी बनकर
एक छाए   की तरह
सदा साथ निभाती मेरी माँ ।

कभी चट्टानों से भी कठोर
कभी मखमल की तरह कोमल
कभी शहद से भी मीठी
मेरी प्यारी माँ ।

चाहे दिन हो चाहे रात
या फिर दुखो की  वृष्टि
साथ देती एक साये की तरह
बढ़ाती हौसला हर मोड़ पर ।

ज़िन्दगी के सफर में
विपत्ति की टकरार में
जब भी मेरे पैर डगमगाए
हिम्मत बढ़ाया  सदा
माँ की शिक्षा ने सदा ।

कभी काले मेघों की तरह  गरजती
मेरी शरारतो पर
फिर प्यार से मानती
लती चेहरे पर मुस्कान ।

ईश्वर का वरदान,
मेरी पक्की सहेली,
है अनोखी  मेरी माँ ।

कलम : श्रुति  ई  आर 

Wednesday, April 10, 2013

सावन की झड़ी



देखो यारो देखो
आसमान को  देखो
नीले बदल कैसे
रंग अपने बदले |

काले -काले मेघा
क्या लाये हो पैगाम तुम
क्या तुम बदलोगे हालत को
देकर प्यासी धरती को ठंडक |

बरसो  मेघा अब तो बरसो  
तरसे मनष्य ,प्यासे पंची
दूर दरिया सूख रही है
अब तो हठ छोड़ो ।

देखो तुम अब न मत कहना
तेरी राह देकते-देकते
देखो पल,दिन,महीने गुज़रे
अब न और तरसाओ हमें   ।

सूखे पेड़ -पौधों को देखो
तड़पती मछली को तो देखो
करो इन पर अब तो  रहमत
आँखे तरसे  तुझे देखने को ।

टप -टप ,टप -टप
बरस रहा है  वो
देखो कितना शीतल
हो रहा है जग ।

सबकी  मन्नत ,सबकी इच्छा
पूरी कर रहा है वो
इश्वर का वरदान बनकर
अमृत बरसा रहा है वो ।

धन्य हो गई मेरी धरती
तेरी बूंदों को छूकर
अब न रूठकर जाना फिर से
आते- जाते रहा करो ।

  
 कलम  : श्रुति ई  आर