Wednesday, April 10, 2013

सावन की झड़ी



देखो यारो देखो
आसमान को  देखो
नीले बदल कैसे
रंग अपने बदले |

काले -काले मेघा
क्या लाये हो पैगाम तुम
क्या तुम बदलोगे हालत को
देकर प्यासी धरती को ठंडक |

बरसो  मेघा अब तो बरसो  
तरसे मनष्य ,प्यासे पंची
दूर दरिया सूख रही है
अब तो हठ छोड़ो ।

देखो तुम अब न मत कहना
तेरी राह देकते-देकते
देखो पल,दिन,महीने गुज़रे
अब न और तरसाओ हमें   ।

सूखे पेड़ -पौधों को देखो
तड़पती मछली को तो देखो
करो इन पर अब तो  रहमत
आँखे तरसे  तुझे देखने को ।

टप -टप ,टप -टप
बरस रहा है  वो
देखो कितना शीतल
हो रहा है जग ।

सबकी  मन्नत ,सबकी इच्छा
पूरी कर रहा है वो
इश्वर का वरदान बनकर
अमृत बरसा रहा है वो ।

धन्य हो गई मेरी धरती
तेरी बूंदों को छूकर
अब न रूठकर जाना फिर से
आते- जाते रहा करो ।

  
 कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

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