Sunday, June 16, 2013

तन्हाई

                                           






दीवारों से करती  हूँ बाते
पर वो भी मूह फेरते है
हवाओ से करने जाती हूँ  दोस्ती
पर वो भी हाथ नहीं मिलाते
साया भी नहीं देता अब साथ मेरा
घूमा फिरता है मुझसे ख़फा - ख़फा।

सभी खूबसूरत मौसम
भाग जाते है मुझको देखकर
रोशनी की तलाश करती हूँ  हर रोज़ ।

धूप इतनी बढ़ती जा रही है
तड़प रही हूँ ,अब हार चुकी हूँ
कदम आगे अब नहीं बढ़ते
तपती धरा मुझे अब बैठने भी नहीं देती ।

डर लगता है अब तो
कही अंधकार निगल न जाए
कही ऐसी दुनिया
में न पंहुचा दे
जहाँ मै खुदको पहेचान भी न पाऊ ।


कलम : श्रुति ई आर

Monday, April 22, 2013

मै किसी का खिलौना नहीं



हाँ में एक औरत हूँ
किसी की बेहन ,
किसी की माँ ,
किसी की पत्नी
और न जाने कितने रिश्ते
निभाती हूँ ईमानदारी से |

हाँ में एक औरत हूँ
अपना घर -परिवार संभालती हूँ ,
संतान को जन्म देती हूँ,
देश क डोर संभालती हूँ ,
कभी डॉक्टर तो कभी इंजिनियर ,
कभी लेखिका तो कभी शिक्षक ,
कभी पुलिस तो कभी फ़ौजी ,
कभी वैज्ञानिक तो कभी गायिका ,
न जाने कहाँ -कहाँ
देती हूँ अपनी भगीदारी
देश को सीने से लगाकर
देती हूँ विकास में योगदान ।

क्या हुआ अगर में औरत हूँ
क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है ?
क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है ?
क्या समानता ,स्वतंत्रता
मेरे लिया लागू  नहीं है ?
क्या मुझे कोई भी हक़ नहीं है ?

क्या हो गया है इस देश को
जहाँ देश को भारत माता कहते है ,
धरती को धरती देवी कहते है,
माता की पूजा और वंदना करते है ,
उसी देश में औरत की निंदा भी करते है ।

औरत पर अत्याचारों की वृष्टि होती है
भ्रूण -हत्या और बलात्कार का शिकार होती है
औरत आज मर्दो के हाथ का खिलौना बन चुकी है |

आज बलात्कार की संख्या
आसमान छू रही है
हवस के भूखे भेड़ियों का
शिकार बनती जा रही है
वह औरत को चीरता -दबोचता है
लेकिन कोई उस पर ऊँगली नहीं उठाता ।

देश के हर शहर -कस्बे में
यह वारदात आम हो चुकी है
औरत आवाज़ उठाती है
लेकिन आवाज़ किसी कोने में दब जाती है
नारेबाजी होती है पर कोई कानून नहीं बनता
पढ़े -लिखे गवारो की दुनिया में
औरत मात्र खिलौना बन चुकी  है ।

माँ नहीं, बेहन नहीं 
बच्ची नहीं ,औरत नहीं
जहाँ स्र्त्रीजात को देकते है
अपने दरिन्देपन पर उतर आते है ।

आखिर क्या गलती है हमारी ?
औरत होना क्या पाप है ?
कब आयेगा नया सवेरा
हमारे जीवन में
जब हमारा हक हमें मिलेगा
पहचान और इज्ज़त मिलेगी
हमे  कुचला नहीं जायेगा ।

समय आ गया है बदलाव का
नया कानून बनाने का
दरिंदो को हत्काडिया पहनाने का
औरत की रक्षा -सुरक्षा करने का
उन्हें उनका हक़ लौटने का । 


कलम :श्रुति ई आर 

Sunday, April 21, 2013

जी ले ज़रा

        

मौसम का पैगाम है
मुस्कादो  ज़रा दिल से
खुशिया दस्तक देगी
कुछ ही  पल भर में |

छोड़ो  सब काम -काज़  को
महसूस करो इन हवाओ को
जीलो ज़रा इन लम्हो को
दर्द -परेशानी से दूर
शांति भरे वातावरण में।

क्यों तुम इस भाग दौड़ में
खो रहे हो अपने आपको ,
अपने प्यारी ज़िन्दगी को
ज़रा ठहरो और देखो ज़रा
दुनिया कितनी रंगीन है ।

मदहोशी से बहती नदी को देखो,
झरनों से बहती लहरों को देखो ,
झूमती कलियों को तो  देखो,
भवरो के गूँज को तो  सुनो,
तितली के रंगों  को तो देखो |

बरसात के बोंदो को महसूस करो ,
मिट्टी सुगंध को पहचनो ,
हर मौसम के रंग को देखो ,
हर छोटे-बड़े लम्हों को जियो
कोयल का गीत सुनो  ,
प्रकृति के साथ जी कर तो देखो ।


कलम :श्रुति ई आर


 
 

Friday, April 19, 2013

तबाही का जशन

                              
आज शहर  में बड़ी चहल -पहल  है
लोग अपने कम-काज़ में
बड़े व्यस्त नज़र आ रहे है
तेज़ रफ्तार में चलती गाड़ी की तरह
ज़ोरो -शॊरो में भाग रहा है  शहर  |

बच्चे खुशी -खुशी
पाठशाला जा रहे है
माँ चहरे पर मुस्कान लिए
कर  रही है विदा ।

कोई दफ्तर जा रहा है तो
कोई घर के काम में व्यस्त
कोई पढ़ने जा रहा है तो
कोई पढ़ाने  जा रहा है ।

अरे अचानक से यह क्या हुआ
यह बड़ा धमाका कहा हुआ
चारो ओर चीखो की आवाज़
आँखों से आँसू और बदन से खून
लोग दर्द से रो रहे है
चारो और अंधकार छा  गया है 
शहर में हंगामा मच गया है ।

खून से लतपत हुई  धरती
दयनीय अवस्था में
लोग चीख रहे है
कोई अपना हाथ खो चुका है तो
कोई अपने दोनो पैर
तो कोई ज़िन्दगी और मौत के बीच
कई तो ईश्वर को प्यारे  हो गए  है  ।

अम्बुलेंज़ तेज़ी से जा रही है
सहायता का हाथ बड़ा रही है
 अस्पताल और डाक्टरों  से ज़्यादा
अस्पताल में पीड़ित की संख्या।

पुलिस और पत्रकारो ने
पूरे शहर को घेर लिया
आकाशवाणी और दूरदर्शन में
तबाही की खबरे
देश की जनता,
पूरा शासन परेशान
और आँखों  में सबके  नमी  ।


आज मनुष्य ,मनुष्य की जान लेता है
कस्बा ,शहर और देश तबाह करता है
रोशनी के मार्ग से कोसो परे
अंधकार का मार्ग अपनाता है
अपने ही भाई -बहनो से जीने का हक छिनता है ।

आखिर क्यों हो रहा है यह सब ?
क्यों लोग तबाही का जशन मानाते  है ?
दूसरो के आँसू का  जाम क्यों पीते  है ?
क्या इन्सनियात इसी को कहते है ??


कलम :श्रुति ई आर
 

Thursday, April 18, 2013

मुझे भी जीने का हक है




छोटी सी गुड़िया बन
मै  आऊँगी इस दुनिया में
किलकारियो से घर -आँगन
गूँज उठेगा |

सीने से अपने लगाना
मेरी प्यारी माँ
प्यारी-प्यारी लोरी
मुझे सुनना तुम ।

आपका हाथ पकड़कर
चलना सीखूँगी मै
आपके साथ मस्ती
करुँगी मै ।

पढ़ -लिखकर  ऊँचाई छू  लूँगी  मै
आपका सपना पूरा करुँगी मै 
और घर-परिवार में लाऊँगी रोनक मै ।

नहीं ! यह मुझे
क्या हो रहा है
मेरी साँस क्यों
थम रही है ।

क्या थी मेरी गलती ?
क्यों किया ऐसा मेरे साथ ?
मुझे इस दुनिया में आने तो देते
इस सुन्दर दुनिया का दीदर
करने तो देते ।

किस बात का था डर आपको
दहेज  का या फिर किसी और बात का
माँ मै  कोई बिकाऊ वस्तु नहीं
जीने का हक़ है मुझे भी ।

क्या गलत है
अगर मै कन्या हूँ
देवी माँ को तो
पूजते हो तुम
जब उनकी करते हो इज्ज़त  तो
मेरी निंदा क्यों करते हो ??


कलम : श्रुति  ई  आर


Wednesday, April 17, 2013

DEDICATED 2 MQB..THE MOST FAMOUS GANG OF STCET..
दास्तान है ये
मछरो के फ़ौज की
आवारा ,निकम्मे
यारो के यारी की |

दोस्ती थी इनमें
बड़ी गहरी
मरते -जीते थे
एक दूजे के लिए ।

अपनी मर्ज़ी के मालिक
जीते है अपनी ज़िन्दगी
ऐशो ,आराम और खुशी से
करते है आवारागर्दी ।

कक्षा में हमेशा पीछे बैठते
गप -शप ,गप -शप  करते रहते
एक दिन नाराज़ हुए
डाल दिया नाम इनका


नाम का जादू ऐसा चला
दोस्ती का रंग गहरा हुआ
अब उठना -बैठना साथ में
हँसना -रोना साथ में ।

घूमने गए छुट्टीयो में
और पास आये एक दुसरे के
जब जेब होने लगा खाली
एक ही थाली में खाने लगे
बड़ा पेट ,छोटा बर्तन
दिल था खुश और पेट था भरा ।

छुट्टीयो  के बाद यादो को सजोये रखा
तस्वीर को दिल से लगा कर रखा
बाते -करते ,हँसते -गाते
खुशी से अपना दिन बिताते ।

एक था उसमे सबसे निराला
नन्हा -मुन्ना मजनू  आवारा
कई कन्याओ के दिल में दस्तक दी
पर हाथ न आई एक भी छोरी ।

एक था सबसे मोटू उसमे
सबसे प्यारा ,सबसे नटखट
वज़न घटाने के बारे में
सोचता हर दिन पर करता नहीं ।

एक सवेरा ऐसा आया
मिला इनको एक प्यारा तोफा 
शिक्षक के रूप में इन्हे मिला
एक बड़ा भाई और सच्चा दोस्त
साथ दिया उन्होंने हमेशा
दिखाया मार्ग सदा रौशनी का । 


Thursday, April 11, 2013

मेरी माँ


ममता का सागर
दया की धारा
प्रेम की मूरत
ऐसी है मेरी माँ |

कभी सूरज की किरणो की भांति
कभी चंदा की चाँदनी बनकर
एक छाए   की तरह
सदा साथ निभाती मेरी माँ ।

कभी चट्टानों से भी कठोर
कभी मखमल की तरह कोमल
कभी शहद से भी मीठी
मेरी प्यारी माँ ।

चाहे दिन हो चाहे रात
या फिर दुखो की  वृष्टि
साथ देती एक साये की तरह
बढ़ाती हौसला हर मोड़ पर ।

ज़िन्दगी के सफर में
विपत्ति की टकरार में
जब भी मेरे पैर डगमगाए
हिम्मत बढ़ाया  सदा
माँ की शिक्षा ने सदा ।

कभी काले मेघों की तरह  गरजती
मेरी शरारतो पर
फिर प्यार से मानती
लती चेहरे पर मुस्कान ।

ईश्वर का वरदान,
मेरी पक्की सहेली,
है अनोखी  मेरी माँ ।

कलम : श्रुति  ई  आर 

Wednesday, April 10, 2013

सावन की झड़ी



देखो यारो देखो
आसमान को  देखो
नीले बदल कैसे
रंग अपने बदले |

काले -काले मेघा
क्या लाये हो पैगाम तुम
क्या तुम बदलोगे हालत को
देकर प्यासी धरती को ठंडक |

बरसो  मेघा अब तो बरसो  
तरसे मनष्य ,प्यासे पंची
दूर दरिया सूख रही है
अब तो हठ छोड़ो ।

देखो तुम अब न मत कहना
तेरी राह देकते-देकते
देखो पल,दिन,महीने गुज़रे
अब न और तरसाओ हमें   ।

सूखे पेड़ -पौधों को देखो
तड़पती मछली को तो देखो
करो इन पर अब तो  रहमत
आँखे तरसे  तुझे देखने को ।

टप -टप ,टप -टप
बरस रहा है  वो
देखो कितना शीतल
हो रहा है जग ।

सबकी  मन्नत ,सबकी इच्छा
पूरी कर रहा है वो
इश्वर का वरदान बनकर
अमृत बरसा रहा है वो ।

धन्य हो गई मेरी धरती
तेरी बूंदों को छूकर
अब न रूठकर जाना फिर से
आते- जाते रहा करो ।

  
 कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

Saturday, March 30, 2013

मूल्यों की हत्या

                                             

मानव से मानवता 
दूर भाग रही है | 
जाने कहा और क्यों 
गुम होती जा रही है | 

ज़िन्दगी की भाग दौड़ में 
अपनी पहचान खो चुके है हम | 
लालच और छल को 
अपना गहना बना चुके है | 

आज रुपए की कीमत 
घटती जा रही है | 
अपने मतलब की पूर्ति के लिए 
अपना इमान बेचते जा रहे है | 
हर इन्सान  आज 
भ्रष्टाचार के रंग में  घुलता  जा रहा  है | 

शिक्षा का मंदिर आज 
 ज्ञान से ज्यादा पैसो की 
भाषा बोलता  है | 
नैतिक मूल्यों  से परे 
किताबो के पन्ने रटाते है | 

कही भी जाये हम 
पाओगे तो बस दौड़ 
पैसो के लिए दौड़ 
जहा अपने नहीं पराये नहीं 
स्वाभिमान नहीं मुल्य नहीं 
टेबल के नीचे से या फिर ऊपर से 
गिरते जा रहे है अपने ही पापो से | 

भारत हमारा देश है। हम सब भारतवासी भाई- बहन है  .......
क्या याद है किसी को यह सब 
क्यों भूल जाते है हम सब | 
जहा भी देखो मार-पीठ 
एक-दूसरे  की हत्या या फिर 
बम विस्फोट और लूट -मार 
अपहरण और क्या कुछ नहीं | 

भाईचारा और प्रेम जाने कहा
और  किस कोने  में 
लुप्त हो चुके है 
आज  इंसान इंसानियत से दूर 
जानवर बनता चला जा रहा है | 

आखिर किसे दोषी करार दे 
इस देश के लोगो को या 
फिर हमारी जड़ो को 
यह सिलसिला आज आसमा 
छू रहा है | 
रोके तो किस किसको हम | 

हल क्या है समाधान क्या है 
कभी सोचा है इस बारे में | 
आज क्यों हमारे मूल्यों की हत्या 
इतनी तेज़ी से बढती जा रही है | 

क्या गाँधी ,नेहरु के 
सपनो का भारत ऐसा था | 
उनकी आज़ादी की लड़ाई 
इन्साफ की जंग 
क्या आज व्यर्थ होती जा रही है | 

जागो दोस्तों  जागो 
ऐसा ज़ुल्म न करो देश पर | 
अंधकार के गहरे कुए में या फिर 
रोशनी की जगमगाती दुनिया में 
किस दिशा में चलानी है देश की नौका 
फैसला तुम्हारा है | 
बस तुम्हारा है |


   कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

Tuesday, March 5, 2013

ज़िन्दगी

                                          

मुश्किलें खोलती है कई राज़
सबक बना देती है सिकंदर
ज़िन्दगी तो जीने का बस दूसरा नाम
दिखा देती है कई अनदेखे  सुराख़
करती है नए रास्तो से परिचय
बना देती है हमको इंसान ।

सूरज की तपती  धूप  ले आता है यह पैगाम
रास्तो में कई काँटों से होगी मुठभेड़
कायरता का रास्ता न अपनाना तुम
क्या हुआ अगर कांटा चुभ  गया तो
तुफानो को पार  करना है अभी बाकी
चांदनी की आड़ में भूल न जाना ऐ इंसान
ज़िन्दगी हमेशा फूलो का गुलदस्ता नहीं ।

डूबते हुए सूरज के साथ
नया सवेरा ज़रूर आता है
उम्मीद के इस चक्रव्यूह में
किनारा कभी तो दिख जाता है
प्यासे को पानी, भूखे को खाने की तलाश में
बस ज़िन्दगी युही गुज़र जाती है
सिकंदर कहलाता है वो जिसने
अमावस में चांदनी है खोजी ।

ज़िन्दगी से खुशियों की गुज़ारिश में
बना लेते है अपने को ही शत्रु
अपने कल की तलाश में
अपने आज से कह देते है अलविदा
ज़िन्दगी बनी उनकी रंगीन जिसने
मुरझाते फूल को हसना है सिखाया ।


दुर्गम राहे डूबा देते है
आसूओ के गहरे सागर में
धूप ,पसीना बना देती है
खून और लहू को भी पानी
लेकिन जिसने विघ्न से खेलना है सीखा
उसने ज़िन्दगी जीना  है सीखा ।

कभी हार तो कभी जीत
कभी सुख तो कभी दुखो की बरखा
कभी बहार तो कभी छाए काले बादल
ज़िन्दगी तो बस है एक रूपए का सिक्का ।

नाविकों की अदा  है निराली
कैसे करते है तुफानो का सामना
ख़ोज लेते है अपनी मंजिल
कुछ सीख इंसान कुछ ले सबक ।

क्या हुआ अगर पसीना तूने है बहाए
रीढ़ की हड्डी तो बनी मज़बूत
इस जिगर के साथ अपने कदम बढ़ा
देख दुनिया फिर करे सलाम तुझे ।
  

  कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                           

Monday, March 4, 2013

तेरी मेरी दोस्ती

तेरी मेरी दोस्ती है उन
हिमालय पर्वत से भी ऊँची
जहाँ हिम और गगन
हाथ  मिलते है ।

तेरी मेरी दोस्ती है
सागर की गहराई से भी गहरी
जहाँ आज तक कोई
इंसान न पहुँच सका हो |

दोस्ती हमारी है उन
समुद्र  की लहरों की तरह
जो एक दुसरे के सुख-दुःख में
साथ  लहराकर बहा करती है।

तेरी मेरी दोस्ती है उन
सदाबहार वनों की तरह सदा हरित
जो जुदा होकर भी
एक दुसरे के सात होती है |

फिर न जाने कब आये  ये पतझड़
पेड़ो की पत्तो की तरह
कर दिया हमें अलग
डाल  दी दरार हमरी दोस्ती पर |

फिर पता नहीं कहा से आए
ये बिन मौसम की बरसात
वर्षा की बूंदों की तरह
जिसने मिटा दी हमारी सारी  यादे |

लेकिन फिर भी मुझे
आशा की किरण नज़र आई
फिर मैंने महसूस किया
यह सिर्फ वेहम था मेरा |

जिस तरह वर्षा के समय
पीले पल्लव लाते फिर से हरियाली
उसी तरह यह रुकवाते
बनती हमारी दोस्ती को और गहराह
इस तरह हम बंधे है
प्रेम की एक डोर  से |
  
 कलम  : श्रुति ई  आर                                                                                                                                                                                                                

Friday, February 22, 2013

एक अजूबा


राज़ की बात सुनो ज़रा 
मेहनत से न मुह  फेरो 
ज़िन्दगी के सफर में 
यह बनेगी शक्ति तुम्हारी | 

ताबीज़  ,बबूत आँखों का धोखा 
आत्मविश्वास से है छोटा 
आत्मविश्वास है जिसके अन्दर 
कीमती हीरा है उसके पास। 

घड़ी के कांटे भाग रहे है 
किसकी प्रतीक्षा में हो तुम 
मेहनत  की नौका  में सवार 
पहुँचो सफलता के शिखर पर | 

मेहनत  को अपनाये जो 
वही  सिकंदर बने यारो 
 अपना भाग्य  वे खुद लिखे 
कदम उनके चूमे मंजिल | 

दुर्गम मार्ग पर चलकर ही 
चींटी मंजिल को पाती  है
सुगम मार्ग पर चलती तो वे 
बस रहो में खो जाती । 

इसलिए दोस्तों मेरी मानो 
मेहनत से बदलो दुनिया 
इस अजूबे से जग में 
सफलता बने गुलाम तुम्हारी । 


कलम  : श्रुति ई आर