हाँ में एक औरत हूँ
किसी की बेहन ,
किसी की माँ ,
किसी की पत्नी
और न जाने कितने रिश्ते
निभाती हूँ ईमानदारी से |
हाँ में एक औरत हूँ
अपना घर -परिवार संभालती हूँ ,
संतान को जन्म देती हूँ,
देश क डोर संभालती हूँ ,
कभी डॉक्टर तो कभी इंजिनियर ,
कभी लेखिका तो कभी शिक्षक ,
कभी पुलिस तो कभी फ़ौजी ,
कभी वैज्ञानिक तो कभी गायिका ,
न जाने कहाँ -कहाँ
देती हूँ अपनी भगीदारी
देश को सीने से लगाकर
देती हूँ विकास में योगदान ।
क्या हुआ अगर में औरत हूँ
क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है ?
क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है ?
क्या समानता ,स्वतंत्रता
मेरे लिया लागू नहीं है ?
क्या मुझे कोई भी हक़ नहीं है ?
क्या हो गया है इस देश को
जहाँ देश को भारत माता कहते है ,
धरती को धरती देवी कहते है,
माता की पूजा और वंदना करते है ,
उसी देश में औरत की निंदा भी करते है ।
औरत पर अत्याचारों की वृष्टि होती है
भ्रूण -हत्या और बलात्कार का शिकार होती है
औरत आज मर्दो के हाथ का खिलौना बन चुकी है |
आज बलात्कार की संख्या
आसमान छू रही है
हवस के भूखे भेड़ियों का
शिकार बनती जा रही है
वह औरत को चीरता -दबोचता है
लेकिन कोई उस पर ऊँगली नहीं उठाता ।
देश के हर शहर -कस्बे में
यह वारदात आम हो चुकी है
औरत आवाज़ उठाती है
लेकिन आवाज़ किसी कोने में दब जाती है
नारेबाजी होती है पर कोई कानून नहीं बनता
पढ़े -लिखे गवारो की दुनिया में
औरत मात्र खिलौना बन चुकी है ।
माँ नहीं, बेहन नहीं
बच्ची नहीं ,औरत नहीं
जहाँ स्र्त्रीजात को देकते है
अपने दरिन्देपन पर उतर आते है ।
आखिर क्या गलती है हमारी ?
औरत होना क्या पाप है ?
कब आयेगा नया सवेरा
हमारे जीवन में
जब हमारा हक हमें मिलेगा
पहचान और इज्ज़त मिलेगी
हमे कुचला नहीं जायेगा ।
समय आ गया है बदलाव का
नया कानून बनाने का
दरिंदो को हत्काडिया पहनाने का
औरत की रक्षा -सुरक्षा करने का
उन्हें उनका हक़ लौटने का ।
कलम :श्रुति ई आर